नाथ समुदाय की संस्कृति और साहित्य: एक विस्तृत परिचय

नाथ साहित्य एक परिचय


नाथ साहित्य एक धार्मिक संगठन के रूप में उत्पन्न हुआ था जो भारत के उत्तरी और मध्य भागों में 11वीं से 18वीं शताब्दी तक अपने चर्चों के लिए प्रसिद्ध था। इस संगठन के सदस्य नाथ कहलाते थे। नाथ संगठन का स्थापक गोरखनाथ था और वे अपने सिद्धांतों, तपस्या और अभ्यासों के लिए जाने जाते हैं। नाथ साहित्य का अधिकांश भाग भारतीय धर्म और दर्शन के संबंध में है जिसमें अध्यात्म, ज्योतिष, योग, समाज और स्वास्थ्य आदि विषयों पर विस्तृत चर्चा की गई है। इस साहित्य के कुछ प्रसिद्ध ग्रंथ हैं - गोरखपत्र और सिद्धसिद्धान्त पद्धति, हठयोग प्रदीपिका, चरक संहिता और योगवासिष्ठ आदि।

नाथ संगठन के सदस्य गुप्त वंशी राजाओं के शिष्य भी थे जो उन्होंने राजनीति और समाज के क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नाथ संगठन के सदस्य विविध जातियों, वर्णों और धर्मों से थे। उन्होंने अपने संगठन को समाज में फैलाने के लिए जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आश्रम और मठ बनाए। इन आश्रमों में नाथ संगठन के सदस्य विविध तरीकों से जीवन व्यतीत करते थे जैसे कि अध्ययन, तपस्या, योग, ध्यान और सेवा आदि। नाथ संगठन के गुरु और संतों के द्वारा लिखित ग्रंथों में अपने देश के लिए सेवा करने, सभी मनुष्यों की समता, समाज के विकास और अध्यात्म के लिए जीवन का उद्देश्य होना शामिल है।

नाथ संगठन के सदस्य अपने जीवन को भूतकाल से लेकर भविष्य के संदर्भों तक देखते हुए समाज के विभिन्न मुद्दों का समाधान ढूंढने में लगे रहते थे। उन्होंने अपने जीवन का महत्वपूर्ण भाग समाज के लिए समर्पित कर दिया था। इसलिए नाथ संगठन के सदस्यों को एक अलग धार्मिक विश्वास नहीं था, बल्कि वे एक सामाजिक और आध्यात्मिक संगठन के रूप में अपनी भूमिका निभाते थे।


नाथ संगठन के सदस्यों ने उन्नति, विकास, और समरसता के लिए जीवन का मार्ग चुना। वे ध्यान और योग के माध्यम से अपनी आत्मा के साथ संवाद करते थे। नाथ संगठन के गुरु और संतों ने विभिन्न विचारों के मुद्दों पर अपनी रचनात्मक रचनाएं लिखीं थीं जो समाज के लिए काफी महत्वपूर्ण होती थीं।

नाथ संगठन के संतों के ग्रंथ भारत की धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण अंग होते हैं। इन ग्रंथों में समाज के विभिन्न मुद्दों पर विचारों का विस्तार होता है|

सब नाथों में प्रथम आदिनाथ स्वयं शिव माने जाते हैं।

मत्स्येन्द्रनाथ नाथ सम्प्रदाय के एक महान सिद्ध थे जो उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में वर्तमान योग साधना के प्रचारक थे। उन्होंने वैष्णव, शैव तथा बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को सम्मिलित कर एक नयी साधना विधि की उत्पत्ति की। मत्स्येन्द्रनाथ के समय में योग तथा तांत्रिक साधना के बीच एक संगम हुआ था, जिसके माध्यम से उन्होंने अनेक योगियों को उनके धर्म के अनुसार सिद्ध करने की साधना सिखाई। उनके नाम से मत्स्यासन का नाम संबंधित होता है जो एक प्रसिद्ध योग आसन है।

गोरखनाथ जी के गुरु का नाम मत्स्येन्द्रनाथ था। गोरखनाथ जी उनके विद्यागुरु थे और उन्हें सिद्ध बनाने का उनका मार्गदर्शन मिला था। इस प्रकार, मत्स्येन्द्रनाथ जी गोरखनाथ जी के पूर्वज गुरु हैं। गोरखनाथ जी ने अपने गुरु मत्स्येन्द्रनाथ जी के सिद्धांतों को अपनाया और इसे आगे बढ़ाया था, जिससे नाथ सम्प्रदाय की एक अलग पहचान उत्पन्न हुई।

गोरखनाथ के गुरु कौन थे, इसके बारे में अलग-अलग मान्यताएं और कथाएं हैं और इसका कोई निश्चित जवाब नहीं है। कुछ स्रोत यह सुझाव देते हैं कि उन्होंने अपने बड़े भाई संत मच्छेन्द्रनाथ से नाथ सम्प्रदाय में दीक्षा ली थी, जबकि कुछ अन्य स्रोत उन्हें महासिद्ध मत्स्येन्द्रनाथ का शिष्य मानते हैं। हालांकि, नाथ परम्परा में गुरु-शिष्य का रिश्ता एक निरंतर और अनंत वंशज के रूप में देखा जाता है, जहाँ अंतिम गुरु अव्यक्त दिव्यता होती है।

नाथों की संख्या – नाथ साहित्य एक परिचय

गोरक्ष सिद्धांत संग्रह के अनुसार नवनाथ-

1. नागार्जुन
2. जड़भरत
3. हरिश्चंद्र
4. सत्यनाथ
5. भीमनाथ
6. गोरक्षनाथ
7. चर्पटनाथ
8. जलंधरनाथ
9. मलयार्जुन

डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार के अनुसार नवनाथ-

1. आदिनाथ
2. मत्स्येंद्रनाथ
3. गोरखनाथ
4. गाहिणीनाथ
5. चर्पटनाथ (चरकानंद)
6. चौरंगीनाथ
7. ज्वालेंद्रनाथ
8. भर्तनाथ
9. गोपीचंदनाथ

संपूर्ण नाथ साहित्य गोरखनाथ के साहित्य पर आधारित है।

नाथ साहित्य संवाद रूप में है।

मत्स्येंद्रनाथ/मछेंद्रनाथ तथा गोरक्षनाथ/ गोरखनाथ सिद्धों में भी गिने जाते हैं।

मत्स्येन्द्रनाथ के विद्यागुरु गौडपादाचार्य थे।

मच्छिंद्रनाथ चौथे बौधित्सव अवलोकितेश्वर के नाम से भी प्रसिद्ध हुए।

नाथों की साधना ‘हठयोग’ की साधना है।

हठयोग के ‘सिद्ध सिद्धांत पद्धती’ ग्रंथ के अनुसार ‘ह’ का अर्थ ‘सूर्य’ तथा ‘ठ’ का अर्थ ‘चंद्रमा’ माना गया है।

गोरखनाथ ने ‘षट्चक्र पद्धति’ आरंभ की।

हजारी प्रसाद द्विवेदी ने चौरंगीनाथ को पूरनभगत कहा है।

जलंधरनाथ बालनाथ के नाम से तथा नागार्जुन रसायनी के नाम से प्रसिद्ध थे।

नाथ पंथ का प्रभाव पश्चिमी भारत (राजपूताना, पंजाब) में था।

नाथ पंथ की विशेषताएं – नाथ साहित्य एक परिचय

बाह्याचार, कर्मकांड, तीर्थाटन, जात-पात, ईश्वर उपासना के बाह्य विधानों का विरोध।

अंतः साधना पर बल।

चित्त शुद्धि और सदाचार में विश्वास।

गुरू महिमा।

नारी निन्दा।

भोग-विलास की कड़ी निन्दा।

गृहस्थ के प्रति अनादर का भाव।

इंद्रिय निग्रह, वैराग्य, शून्य समाधि, नाड़ी साधना, कुंडलिनी जागरण, इंगला, पिंगला, सुषुम्ना, षट्चक्र इत्यादि की साधना पर बल दिया।

उलटबांसी, रहस्यात्मकता, प्रतीक और रूपकों का प्रयोग।

सधुकड़ी भाषा का प्रयोग।

जनभाषा का परिष्कार।

गोरखनाथ – नाथ साहित्य एक परिचय

नाथ पंथ और हठयोग के प्रवर्तक गोरखनाथ थे।

गुरु गोरखनाथ के संपूर्ण जीवन परिचय एवं सभी रचनाओं एवं साहित्य को जानने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए।

गोरखनाथ के समय को लेकर विद्वानों में मतैक्य है—

राहुल सांकृत्यायन — 845 ई.

हजारीप्रसाद द्विवेदी — 9वीं शती

पीतांबरदत्त बड़थ्वाल — 11वीं शती

रामचंद्र शुक्ल, रामकुमार वर्मा — 13वीं शती

यह मत्स्येंद्रनाथ के शिष्य थे।

गोरखनाथ आदिनाथ शिव को अपना पहला गुरु मानते थे।

मिश्रबंधुओं ने गोरखनाथ को हिंदी का ‘पहला गद्य लेखक’ माना है।

गोरखनाथ का नाथ योग ही वामाचार का विरोधी शुद्ध योग मार्ग बना।

डॉ. पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ के 14 ग्रंथों को प्रामाणिक मानकर उनकी वाणियों का संग्रह ‘गोरखवाणी’ (1930) शीर्षक से प्रकाशित करवाया। यह 14 ग्रंथ निम्नांकित हैं—

1. शब्द
2. पद
3. शिष्या दर्शन
4. प्राणसंकली
5. नरवैबोध
6. आत्मबोध
7. अभयमात्रा योग
8. पंद्रहतिथि
9. सप्तवार
10. मछिंद्र गोरखबोध
11. रोमावली
12. ज्ञान तिलक
13. ग्यान चौंतीसा
14. पंचमात्रा।

इनके संस्कृत भाषा में लिखे ग्रंथ हैं-

1. सिद्ध-सिद्धांत पद्धति
2. विवेक मार्तंड
3. शक्ति संगम तंत्र
4. निरंजन पुराण
5. वैराट पुराण
6. गोरक्षशतक
7. योगसिद्धांत पद्धति
8. योग चिंतामणि आदि।

हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इनकी 28 पुस्तकों का उल्लेख किया है।

गोरखनाथ का मुख्य स्थान गोरखपुर है।

“शंकराचार्य के बाद इतना- प्रभावशाली और इतना महिमान्वित भारतवर्ष में दूसरा नहीं हुआ। भारतवर्ष के कोने-कोने में उनके अनुयायी आज भी पाये जाते हैं। भक्ति आंदोलन के पूर्व सबसे शक्तिशाली धार्मिक आंदोलन गोरखनाथ का भक्ति मार्ग ही था। गोरखनाथ अपने सबसे बड़े नेता थे।” —आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी।

मछेंद्रनाथ

यह जाति से मछुआरे थे।

मीननाथ, मीनानाथ, मीनपाल, मछेंद्रपाल आदि नामों से प्रसिद्ध हुए।

यह जालंधर नाथ के शिष्य तथा गोरखनाथ के गुरु थे।

मत्स्येंद्रनाथ वाममार्ग मार्ग पर चलने लगे तब गोरखनाथ ने इनका उद्धार किया।

मत्स्येंद्रनाथ की 4 पुस्तकें हैं।

उनके पदों का संकलन आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘नाथ सिद्धों की वाणियां’ शीर्षक से किया है।

“नाथ पंथ या नाथ संप्रदाय के सिद्धमत, सिद्धमार्ग, योगमार्ग, योग संप्रदाय, अवधूत मत, अवधूत संप्रदाय आदि नाम भी प्रसिद्ध है।” —आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी।

“गोरखनाथ के नाथ पंथ का मूल भी बौद्धों की यही वज्रयान शाखा है। चौरासी सिद्धों में गोरखनाथ गोरक्षपा भी गिन लिए गए हैं। पर यह स्पष्ट है कि उन्होंने अपना मार्ग अलग कर लिया।” —आ.शुक्ल।

‘गोरख जगायो जोग, भक्ति भगायो लोग’ —तुलसीदास।

Admin

I like to read and learn new things.

Post a Comment

Previous Post Next Post