गोरखनाथ Gorakhnath का जीवन परिचय, रचनाएं, जन्म के बारे में विभिन्न मत, गोरखनाथ के बारे में साहित्यकारों के विभिन्न मत एवं गोरखनाथ जी की उक्तियाँ आदि की जानकारी।
परिचय
गोरखनाथ नाथ सम्प्रदाय के प्रमुख आचार्यों में से एक हैं जिन्होंने नाथ साहित्य को आगे बढ़ाया था। नाथ सम्प्रदाय का मूल उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति और मुक्ति है। इस सम्प्रदाय का संस्थापक महासिद्ध श्री गोरखनाथ जी थे।
गोरखनाथ जी ने अपने जीवन के दौरान अनेक सिद्धांत बताए थे, जो आध्यात्मिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपनी शिष्यों को सिद्ध बनाने के लिए अनेक उपाय बताए थे। वे अधिकतर जीवन जीने के संबंध में आध्यात्मिक तत्वों को ध्यान में रखते थे।
गोरखनाथ जी के द्वारा लिखित ग्रंथों में आध्यात्मिक जीवन से संबंधित बहुत से तत्वों को समझाया गया है। उनकी किताबों में योग, ध्यान, ज्ञान, समझ, तपस्या आदि विषयों पर बताया गया है। उनकी शिक्षाओं का उद्देश्य जीवन को सरल बनाना है जो हमें आध्यात्मिक उन्नति और मुक्ति की ओर ले जाता है।
गोरखनाथ एक प्रसिद्ध नाथ संत थे जिन्होंने भारतीय धर्म एवं दर्शन के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके जीवन काल का आंकड़ा स्पष्ट नहीं है, लेकिन विभिन्न इतिहासकारों के अनुसार वे 8वीं या 9वीं शताब्दी के लगभग थे।
गोरखनाथ के नाम से उनकी शिष्य-समुदाय गोरखपंथ विख्यात हो गया था, जो नाथ संप्रदाय की एक शाखा है। उनकी रचनाओं में सभी नाथ सम्प्रदाय की तरह अलौकिक ज्ञान, तपस्या, योग, मेधा एवं अमृतत्व की बातें होती हैं। गोरखनाथ के सिद्ध और अनुभव से उन्होंने अपने उपदेशों का निर्माण किया था।
उनकी प्रमुख रचनाओं में से कुछ हैं: गोरक्षविजय, सिद्धसिद्धान्तपद्धति, विचारसागर, गोरक्षशतक, वीरविजय व योगतारावली। इनमें उन्होंने अपने विचारों, सिद्धांतों, तपो व योग की विधियों को समझाया है।
गोरखनाथ के शिष्यों में उल्लेखनीय नाथ सिद्धों में शहीद भगत सिंह, बाबा बुल्ले शाह, संत रविदास, धनन्जय नाथ, नाथपंथी संत कबीर, संत तुकाराम आदि शामिल हैं। गोरखनाथ की कविताओं और उपदेशों का असर आज भी नाथ समुदाय में दिखता है। नाथ समुदाय के साधक गोरखनाथ की प्रतिमा को गोरखनाथ मंदिरों में पूजते हैं और उनके उपदेशों का अनुसरण करते हैं।
गोरखनाथ के शिष्यों के नाम नाथ सम्प्रदाय के इतिहास और विभिन्न लेखों में उल्लेखित हैं। उनकी संख्या बहुत अधिक है और कुछ नाम निम्नलिखित हैं:
- बाबा बालकनाथ
- गोरखनाथ
- गोपीचंद
- मुनि लाल
- चौरंगी नाथ
- धीमान नाथ
- राजा भर्तारी
- मत्स्येन्द्रनाथ (उनके गुरु)
- जालंधरनाथ
- जना नाथ
- उद्धव नाथ
- चौरंगी नाथ
- भर्तृहरि नाथ
- रामानंद नाथ
- नागानंद नाथ
- अद्भुत नाथ
- सिद्ध नाथ
- धर्म नाथ
- कपाली नाथ
- अचल नाथ
- जलंधर नाथ
- मदन गोपाल नाथ
- कन्हैया नाथ
- अचलेश्वर नाथ
- भवानी नाथ
- सुमिरन नाथ
- सुशील नाथ
- स्वरुप नाथ
- हरिशरण नाथ
ये कुछ उनके प्रसिद्ध शिष्यों के नाम हैं, लेकिन नाथ सम्प्रदाय के अन्य शिष्यों के नाम भी हो सकते हैं जो इतिहास और लेखों में उल्लेखित नहीं हैं।
ना- नाथ ब्रह्म (जो मोक्ष देता है)
थ – स्थापित करना (अज्ञान के सामर्थ्य को स्थापित करना)
नाथ – जो ज्ञान को दूर कर मुक्त दिलाता है।
नाथपंथी शिवोपासक हैं, और अपनी साधना में तंत्र मंत्र एवं योग को महत्त्व देते हैं, इसलिए इन्हें योगी भी कहा जाता है। माना जाता है कि नाथ पंथ सहजयान का विकसित रूप है। विकास परंपरा में भी नाथों का स्थान सिद्धों के बाद ही आता है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार नाथों का समय नौवीं शताब्दी का मध्य है। उनके मत से अधिकतर विद्वान सहमत भी हैं।
नाथ साहित्य के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए – नाथ साहित्य एक परिचय
गोरखनाथ का समय
विद्वानों ने मत्स्येंद्रनाथ का काल नौवीं शती का अंतिम चरण तथा गोरखनाथ का समय है।
दसवीं शती स्वीकार किया है, जबकि अन्य नाथों की प्रवृत्ति सीमा 12वीं 13वीं शताब्दी मानी जाती है।
नाथों की संख्या नौ मानी जाती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार अभी लोग नवनाथ और चौरासी सिद्ध कहते सुने जाते हैं।
नौ नाथो में आदिनाथ (शिव), मत्स्येंद्रनाथ (मच्छिंद्रनाथ), गोरखनाथ, चर्पटनाथ, चौरंगीनाथ आदि प्रमुख है।
नाथ एक विशेष वेशभूषा धारण करते थे जिसमें मेखला, शृंगी, गूदड़ी, खप्पर, कर्णमुद्रा, झोला आदि होते थे।
यह कान चीरकर कुंडल पहनते थे, इसलिए कनफटा योगी कहलाते थे।
नाथ पंथ के प्रवर्तक आदिनाथ या स्वयं शिव माने जाते हैं।
उनके शिष्य मत्स्येंद्रनाथ और इनके शिष्य गोरखनाथ थे।
यह पहले बौद्ध थे, बाद में नाथपंथी हो गए और योग मार्ग चलाया।जिसे हठयोग के नाम से जाना जाता है।
हठयोगियों के सिद्ध सिद्धांत पद्धति ग्रंथ के अनुसार-
ह- सूर्य
ठ – चंद्रमा
हठयोग – सूर्य और चंद्रमा का संयोग।
हठयोग की साधना शरीर पर आधारित है। कुंडलिनी को जगाने के लिए आसन, मुद्रा, प्राणायाम और समाधि का सहारा लिया जाता है।
गोरखनाथ का जीवन परिचय (गोरखनाथ जीवन परिचय एवं रचनाएं)
व्यक्तित्व एवं कृतित्व
जन्म एवं जन्म स्थान
गोरक्षनाथ की उत्पत्ति के दो रुप में मिलते हैं। व्यक्तित्व के रुप में गोरक्षनाथ शिवावतार है।
महाकाल योग शास्त्र में शिव ने स्वयं स्वीकार किया है कि मै ‘योगमार्ग का प्रचारक गोरक्ष हूँ।
हठयोग प्रदीपिका में उल्लेख है कि स्वयं आदिनाथ शिव ने योग-मार्ग के प्रचार हेतु गोरक्ष का रुप लिया था।
‘गोरक्ष सिद्धान्त संग्रह मे गोरखनाथ को ईश्वर की संतान के रूप में संबोधित किया गया है।
बंगीय काव्य ‘गोरक्ष-विजय’ के अनुसार गोरखनाथ आदिनाथ शिव की जटाओं से प्रकट हुए थे।
नेपाल दरबार ग्रंथालय से प्राप्त गोरक्ष सहस्रनाम के अनुसार गोरखनाथ दक्षिण मे बड़ब नामक देश में महामन्त्र के प्रसाद से उत्पन्न हुए थे।
तहकीकाक चिश्ती नामक पुस्तक से प्राप्त वर्णन के अनुसार शिव के एक भक्त ने सन्तानोत्पत्ति की इच्छा से शिव-धूनी से भस्म प्राप्त कर अपनी पत्नी को ग्रहण करने के लिए दिया पर लोक-लज्जा के भय से उस स्त्री ने उस भस्म को फेंक दिया। चामत्कारिक रूप से उसी स्थान पर एक हष्ट-पुष्ट बालक उत्पन्न हुआ। शिव ने उसका नाम गोरक्ष रखा। वर्तमान समय में भी गोरक्षनाथ को नाथ योगी लोग शिव-गोरक्ष के रुप में ही मान्यता देते है।
‘योग सम्प्रदाय विष्कृति’ के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ ने एक सच्चरित्र धर्मनिष्ट निस्संतान ब्राह्मण दंपत्ति को पुत्र प्राप्ति की इच्छा से भस्म प्रदान की, इसी भस्म से गोरखनाथ उत्पन्न हुए। गोरखनाथ के जन्म स्थान के सम्बन्ध में पर्याप्त मतभेद है।
महार्थमंजरी के त्रिवेन्द्रम संस्करण से ज्ञात होता है कि वे चोल देश के निवासी थे उनके पिता का नाम माधव और गुरु का नाम महाप्रकाश था।
अवध की परम्परा में गोरक्षनाथ जायस नगर के एक पवित्र ब्राह्मण कुल में उत्पन्न माने जाते हैं।
विभिन्न मतानुसार
ब्रिग्स ने गोरक्ष को पंजाब का मूल निवासी बताया है।
ग्रियर्सन ने उनका पश्चिमी हिमालय का निवासी होना स्वीकार किया है
डॉ० मोहन सिंह पेशावर के निकट रावलपिंडी जिले के एक ग्राम ‘गोरखपुर’ को उनकी मातृभूमि बताते है।
डा० रांगेय राघव का मत है कि गोरखनाथ का जन्मस्थान पेशावर का उत्तर-पश्चिमी पंजाब है।
पं० परशुराम चतुर्वेदी का अनुमान है कि गोरख का जन्म पश्चिमी भारत अथवा पंजाब प्रांत के किसी स्थान में हुआ था और उनका कार्य-क्षेत्र नेपाल, उत्तरी भारत आसाम, महाराष्ट्र एवं सिन्ध तक फैला हुआ था।
नेपाल पुस्तकालय से उपलब्ध ग्रन्थ योग सम्प्रदाय विष्कृति के अनुसार गोरक्ष की जन्मभूमि गोदावरी नदी के तट पर स्थित ‘चन्द्रगिरि’ नामक स्थान है।
डॉ० अशोक प्रभाकर का मत है कि महाराष्ट्र मे त्रियादेश की स्थापना बताकर तथा नाथ पंथ की कुछ गुफाओं व प्रतीकों को आधार बनाकर गोरखनाथ की जन्मभूमि महाराष्ट्र में स्थित ‘चन्द्रगिरि’ को बताते है।
अक्षय कुमार बनर्जी का मत है कि मत्स्येन्द्र गोरक्ष आदि ने सर्वप्रथम हिमालय प्रदेश-नेपाल, तिब्बत आदि देशों में अपनी योग साधना आरम्भ की और सम्भवतः इन्हीं स्थानो में वे प्रथम देव सदृश पूजे गये उनका स्थान देवाधिदेव पशुपतिनाथ शिव को छोड़कर अन्य सभी देवताओं से ऊँचा था।
तिब्बत व नेपाल के क्षेत्र से ही योग साधना का आन्दोलन पूर्व में कामरूप (आसाम) बंगाल, मनीपुर तथा निकटवर्ती क्षेत्रों में फैला। पश्चिम में कश्मीर, पंजाब पश्चिमोत्तर प्रदेश, यहाँ तक कि काबुल और फारस तक पहुँचा उत्तर प्रदेश हिमालय के समीप होने के कारण अधिक प्रभावित हुआ। दक्षिण पश्चिम और दक्षिण पूर्व में भी गोरखनाथ तथा अन्यान्न नाथ योगियों की शिक्षाएं तथा उनके चमत्कार की कथाएँ पुष्प की सुगंध की तरह चहूँ ओर बिखर गयीं।
गोरखनाथ के जन्म के समय के बारे में निश्चित नहीं कहा जा सकता है-
गोरखनाथ का समय डॉ राहुल सांकृत्यायन ने 845 ईस्वी माना है।
डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी उन्हें नवी शताब्दी का मानते हैं।
डॉ पीतांबरदत्त बड़थ्वाल ने 11वीं शताब्दी का स्वीकार करते हैं।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल तथा डॉ रामकुमार वर्मा इन्हें 13वीं शताब्दी का मानते हैं।
आधुनिक खोजों के अनुसार गोरखनाथ ने ईसा की तेरहवीं सदी के आरंभ में अपना साहित्य लिखा था।
जीवन परिचय एवं रचनाएं)
इनके ग्रंथों की संख्या 40 मानी जाती है, परंतु डॉ पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने इनकी 14 रचनाओं को प्रमाणिक मानकर गोरखवाणी नाम से उनका संपादन किया है। डॉ बड़थ्वाल द्वारा संपादित पुस्तकों की सूची इस प्रकार है– (1) शब्द, (2) पद, (3) शिष्या दर्शन. (4) प्राणसंकली. (5) नरवैबोध, (6) आत्मबोध, (7) अभयमुद्रा योग, (8) पंद्रह तिथि, (9) सप्तवार, (10) मछिन्द्र गोरखबोध, (11) रोमावली, (12) ज्ञान तिलक, (13) ज्ञान चौतीसा, (14) पंचमात्रा।
मिश्र बंधु
डॉ बड़थ्वाल के अतिरिक्त मिश्र बंधुओं ने गोरखनाथ के 9 संस्कृत ग्रंथों का परिचय दिया है– (1) गोरक्षशतक, (2) चतुरशीत्यासन, (3) ज्ञानामृत, (4) योगचिन्तामणि, (5) योग महिला, (6) योग मार्तण्ड, (7) योग सिद्धांत पद्धति, (8) विवेक मार्तण्ड (9) सिद्ध-सिद्धान्त पद्धति
योगनाथ स्वामी
ने गोरखनाथ की 20 संस्कृत ग्रन्थों की सूची दी है- (1) अमनस्क योग (2) अमरौधा शासनम्, (3)सिद्ध-सिद्धान्त पद्धति,(4) गोरक्षसिद्धान्त संग्रह, (5) सिद्ध-सिद्धान्त संग्रह, (6) महार्थ मंजरी, (7) विवेक मार्तण्ड, (8) गोरक्ष पद्धति, (9) गोरक्ष संहिता, (10) योगबीज, (11) योग चिन्तामणि, (12) हठयोग संहिता, (13) श्रीनाथ-सूत्र, (14) योगशास्त्र (15)चतुश्षीत्यासन, (16) गोरक्ष चिकित्सा, (17) गोरक्ष पंच, (18)गोरक्ष गीता, (19) गोरक्ष कौमुदी, (20) गोरक्ष कल्प।
डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी
ने गोरखनाथ 28 ग्रंथों की का उल्लेख किया है, द्विवेदी जी ने लिखा है कि उन पुस्तकों में अधिकांश के रचयिता गोरखनाथ नहीं थे–1.अमनस्कयोग 2. अमरौधशासनम् 3. अवधूत गीता 4. गोरक्ष कल्प 5. गोरक्षकौमुदी 6. गोरक्ष गीता 7. गोरक्ष चिकित्सा 8. गोरक्षपंचय 9. गोरक्षपद्धति 10. गोरक्षशतक 11. गोरक्ष शास्त्र 12.गोरक्ष संहिता 13. चतुरशीत्यासन 14. ज्ञान प्रकाश 15. ज्ञान शतक 16. ज्ञानामृत योग 17. नाड़ीज्ञान प्रदीपिका 18. महार्थ मंजरी 19. योगचिन्तामणि 20. योग मार्तण्ड 21.योगबीज 22. योगशास्त्र 23. योगसिद्धांत पद्धति 24. विवेक मार्तण्ड 25. श्रीनाथ-सूत्र 26. सिद्ध-सिद्धान्तपद्धति 27. हठयोग 28. हठ संहिता।
डॉ० नागेन्द्रनाथ उपाध्याय
ने गोरखनाथ के 15 ग्रंथो की सूची प्रस्तुत की है लेकिन इनकी प्रामाणिकता संदिग्ध है- 1. अमरौधशासनम् 2. अवधूत गीता 3. गोरक्ष गीता 4.गोरक्षशतक 5. विवेक मार्तण्ड 6. महार्थमंजरी 7. सिद्ध-सिद्धान्त पद्धति 8. चतुरशीत्यासन् 9. ज्ञानामृत 10. योग महिमा 11. योग-सिद्धान्त पद्धति 12. गोरक्ष कथा 13. गोरक्ष सहस्रनाम 14. गोरक्षपिष्टिका 15. योगबीज
गोरखनाथ की प्रसिद्ध उक्तियाँ
(1) “नौ लख पातरि आगे नाचें, पीछे सहज अखाड़ा।
ऐसे मन लौ जोगी खेले, तब अंतरि बसै भंडारा ॥”
(2) “अंजन माहि निरंजन भेट्या, तिल मुख भेट्या तेल।
मूरति मांहि अमूरति परस्या भया निरंतरि खेल ॥”
(3) “नाथ बोल अमृतवाणी । बरसेगी कवाली पाणी॥
गाड़ी पडरवा बांधिले खूँटा। चलै दमामा वजिले काँटा॥”
(4) “गुर कोमहिला निगुरा न रहिला, गुरु बिन ज्ञान न पायला रे भाईला।”
(5) “अवधू रहिया हाटे बाटे रूप विरस की छाया।
तजिवा काम क्रोध लोभ मोह संसार की माया॥”
(6) “स्वामी तुम्हई गुरु गोसाई। अम्हे जो सिव सबद एक बुझिबा।।
निरारंवे चेला कूण विधि रहै। सतगुरु होइ स पुछया कहै ॥”
(7) “अभि-अन्तर को त्याग माया”
(8) “दुबध्या मेटि सहज में रहैं”
(9) “जोइ-जोइ पिण्डे सोई-ब्रह्माण्डे”
प्रमुख कथन (गोरखनाथ जीवन परिचय एवं रचनाएं)
“शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और इतना महिमान्वित भारतवर्ष में दूसरा नहीं हुआ। भारतवर्ष के कोने-कोने में उनके अनुयायो आज भी पाये जाते हैं। भक्ति आन्दोलन के पूर्व सबसे शक्तिशाली धार्मिक आन्दोलन गोरखनाथ का भक्ति मार्ग हो था। गोरखनाथ अपने युग के सबसे बड़े नेता थे” – आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
“गोरख जगायो जोग भक्ति भगाए लोग” – तुलसीदास
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
1 नाथ साहित्य के प्रारंभ करता गोरखनाथ थे।
2 गोरखनाथ के गुरु का नाम मत्स्येंद्रनाथ था।
3 हिंदी साहित्य में षट्चक्र वाला योग मार्ग गोरखनाथ ने चलाया।
4 मिश्रबंधुओं ने गोरखनाथ को हिंदी का प्रथम गद्य लेखक माना है।
स्रोत –
- इग्नू स्नातकोत्तर (हिंदी) पाठ्य सामग्री
- हिंदी साहित्य का इतिहास – डॉ नगेंद्र
- नाथ संप्रदाय – डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी
- गोरक्षनाथ और उनका युग – डॉ रांगेय राघव
- अमनस्क योग – श्री योगीनाथ स्वामी
- नाथ संप्रदाय का इतिहास दर्शन एवं साधना प्रणाली – डॉ कल्याणी मलिक
- गोरक्षनाथ एंड कनफटा योगीज – ब्रिग्स
- योगवाणी फरवरी 1977
- नाथ और संत साहित्य तुलनात्मक अध्ययन – डॉ नागेंद्रनाथ उपाध्याय
गोरखनाथ का जीवन परिचय, रचनाएं, जन्म के बारे में विभिन्न मत, गोरखनाथ के बारे में साहित्यकारों के विभिन्न मत एवं गोरखनाथ जी की उक्तियाँ आदि की जानकारी।
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